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आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र देवात्मा हिमालय

अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र देवात्मा हिमालय

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :64
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4197
आईएसबीएन :0000

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अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र

देवात्मा हिमालय क्षेत्र की विशिष्टिताएँ


सौरमण्डल का पृथ्वी पर क्या प्रभाव पड़ता है ? इस जानकारी से किस प्रकार लाभान्वित हुआ जा सकता है ? अनिष्टों की सम्भावनाओं के सम्बन्ध में किस प्रकार सुरक्षात्मक कदम उठाए जा सकते हैं ? इसके लिए साधन सम्पन्न वेधशालाएँ पृथ्वी के अत्यन्त सम्वेदनशील क्षेत्रों में बनाई गई हैं। उनसे जो जानकारियाँ मिली हैं, वे अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण हैं। यदि उन्हें सामान्य क्षेत्रों में सुविधाजनक स्थानों में बनाया गया होता तो वह लाभ न मिलता जो प्रस्तुत संवेदनशील क्षेत्रों में मिल रहा है। उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवक्षेत्रों में भी अनेक प्रकार की शोधों के प्रयास चल रहे हैं, वे अत्यन्त खर्चीले हैं और जोखिम भरे भी। फिर भी क्षेत्रीय संवेदनशीलता का लोभ संवरण नहीं किया जा सका और जहाँ-तहाँ वैसी प्रयोगशालाएँ बनाने का विचार नहीं किया; क्योंकि स्थान विशेष की संवेदनशीलता का लाभ अन्यत्र नहीं उठाया जा सकता।

खग्रास सूर्य ग्रहणों के समय भी उसके फोटो लेने और प्रभाव जाँचने के लिए भी वैज्ञानिक किन्हीं ऐसे स्थानों पर जाते हैं, जहाँ से दृश्य की छवि सीधी देखी जा सकती है। ऐसे स्थान ही उस शोध प्रयोजन की पूर्ति भली प्रकार करते हैं।

मिस्र के पिरामिड मात्र कबें नहीं हैं, उन्हें धरती के एक विशेष क्षेत्र में बनाया गया है, जहाँ से सौरमण्डल की, ग्रहों की, गतिक भिन्नता की नाप-तोल भली प्रकार हो सके, उनकी बदलती परिस्थितियों का लेखा-जोखा ठीक प्रकार लिया जा सके। वे सूक्ष्म गणित पर आधारित विशेष प्रकार की वेधशालाएँ हैं। उपयुक्त स्थान तलाश करके उन्हें विशेष कठिनाईयों के साथ बनाया गया है। यदि भूमि का महत्त्व उतना न रहा होता, तो सम्भवतः वे पिरामिड कहीं ऐसे स्थान पर बनाए गए होते जहाँ आवश्यक वस्तुएँ सुविधापूर्वक मिल सकी होती और कारीगरों का निवास-निर्वाह अपेक्षाकृत सरल होता। पिरामिडों के स्थान चयन में सौर मंडल के विभिन्न प्रभावों का पृथ्वी पर अवतरण ही प्रमुख कारण रहा है।

एशिया के सोवियत क्षेत्र में कई स्थान ऐसे हैं, जहाँ अधिकांश लोग शतायु या उससे भी अधिक समय तक जीवित रहने वाले पाये जाते हैं। इन लोगों का आहार-विहार अन्यत्र रहने वालों की तरह सामान्य ही होता है; किन्तु फिर भी आश्चर्य की बात यह है कि उन्हीं क्षेत्रों में दीर्घजीवी क्यों पाए जाते हैं ? इसका सम्बन्ध भी उन प्रदेशों पर अन्तरिक्षीय विशेष किरणों का बरसना माना जाता है। इसे जलवायु की, आहार-विहार की विशेषता नहीं माना जाता, वरन् उस क्षेत्र में पृथ्वी और आकाश के मिलन का अद्भुत संयोग कहा जाता है।

धरातल का सामान्य वातावरण ऋतुओं के प्रभाव से प्रभावित होता रहता है, पर विशेष क्षेत्र ऐसे भी हैं, जिनकी परिस्थितियाँ धरती और आकाश के बीच विशेष प्रकार के सम्बन्ध पर निर्भर रहती हैं। उन क्षेत्रों की उर्वरता, खनिज सम्पदा, प्राणियों का स्वभाव एवं पौरुष असामान्य रूप से घटा-बढ़ा पाया जाता है। इसे भूगोल एवं खगोल का विशिष्ट प्रत्यावर्तन कहा जा सकता है। हिमालय का वह भाग जिसे देवात्मा कहते हैं, ऐसी ही विशेषताओं से सम्पन्न है। उस पर भू-चुम्बक एवम् अन्तरिक्षीय तरंग वर्षण का विशेष प्रभाव देखा गया है। हिमालय बहुत विस्तृत भी है और ऊँचा-नीचा भी, उसमें कई पठार भी हैं; किन्तु जो विशेषताएँ देवात्मा क्षेत्र में पाई गई हैं, वे एक नहीं अनेकों हैं। वे विशेषताएँ अन्यत्र नहीं हैं। इसी कारण उस परिधि को सिद्ध पुरुषों ने अपने लिए क्रिया क्षेत्र चुना है।

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    अनुक्रम

  1. अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र देवात्मा हिमालय
  2. देवात्मा हिमालय क्षेत्र की विशिष्टिताएँ
  3. अदृश्य चेतना का दृश्य उभार
  4. अनेकानेक विशेषताओं से भरा पूरा हिमप्रदेश
  5. पर्वतारोहण की पृष्ठभूमि
  6. तीर्थस्थान और सिद्ध पुरुष
  7. सिद्ध पुरुषों का स्वरूप और अनुग्रह
  8. सूक्ष्म शरीरधारियों से सम्पर्क
  9. हिम क्षेत्र की रहस्यमयी दिव्य सम्पदाएँ

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